आम आदमी पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर मुफ्त घोषणाओं पर रोक लगाने वाली मांग का विरोध किया
नई दिल्ली। आम आदमी पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर मुफ्त रेवड़ियां बांटने पर रोक लगाने की मांग वाली जनहित याचिका का विरोध किया है। पार्टी ने कहा है कि वंचित वर्ग को मुफ्त पानी, बिजली, ट्रांसपोर्ट, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि की सुविधाएं देना मुफ्त रेवड़ी बांटना नहीं कहा जा सकता। पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट से लंबित मामले में पक्षकार बनाने और पक्ष रखने की अनुमति देने का अनुरोध किया है।
भाजपा प्रवक्ता और वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है जिसमें राजनैतिक दलों द्वारा चुनाव के वक्त मतदाताओं को लुभाने के लिए मुफ्त उपहार की घोषणाओं का मुद्दा उठाया गया है। याचिका में मांग है कि ऐसी घोषणाएं करने वाले दलों पर कार्रवाई हो उनके चुनाव चिन्ह जब्त करने और मान्यता रद करने का चुनाव आयोग को अधिकार दिया जाए।
कोर्ट ने दिए विशेषज्ञ समिति गठित करने के संकेत
सुप्रीम कोर्ट ने 3 अगस्त को इस याचिका पर संज्ञान लेते हुए मुफ्त घोषणाओं के प्रभावों पर विचार करने के लिए विशेषज्ञ समिति गठित करने के संकेत दिए थे और सभी संबंधित पक्षकारों से इस बारे में सुझाव मांगे थे। सुप्रीम कोर्ट कोर्ट के इस आदेश के बाद आम आदमी पार्टी पहली पार्टी है जिसने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर पक्षकार बनाए जाने की गुहार लगाई है और अश्विनी कुमार उपाध्याय की याचिका का विरोध किया है।
AAP ने उठाए सवाल
आम आदमी पार्टी ने दाखिल अर्जी में अश्वनी कुमार उपाध्याय की याचिका के औचित्य पर सवाल उठाया है। कहा है कि पार्टी को याचिका पर प्राथमिक आपत्ति है। कोर्ट को अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से दाखिल याचिका पर विचार नहीं करना चाहिए क्योंकि याचिकाकर्ता के सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी से संबंध हैं। याचिकाकर्ता राजनैतिक उद्देश्य से जनहित याचिका दाखिल करता है। याचिका में मुफ्त रेवड़ियों के नाम पर आर्थिक विकास के एक निश्चित माडल को निशाना बनाया जा रहा है जिसमें सरकारी धन का इस्तेमाल जनता के सामाजिक और कल्याणकारी उपायों के लिए किया जाता है।
आम आदमी पार्टी की दलीलें
आम आदमी पार्टी ने ये भी कहा कि याचिका में राजकोषीय घाटे को लेकर चिंता जताई गई है लेकिन इसमें बड़े उद्योगों और व्यापारों को केंद्र और विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा टैक्स में छूट देने व अन्य तरह की रुटीन में दी जाने वाली सब्सिडी की मुप्त रेवड़ियों से होने वाले बड़े वित्तीय घाटे को नजरअंदाज किया गया है। याचिकाकर्ता राष्ट्र की आर्थिक सेहत सुधारने का जिम्मा सिर्फ वंचित वर्ग पर डाल रहा है। याचिका दाखिल करने के पीछे राजनैतिक उद्देश्य है क्योंकि इसमें की गई मांग वित्तीय घाटे के बारे में या मुफ्त रेवड़ियों पर रोक की नहीं है, बल्कि मांग की गई है कि राजनैतिक दलों को मुफ्त रेवड़ियों की नीतियां घोषित करने से रोका जाए। इस तरह की मांग करते वक्त याचिकाकर्ता ने संविधान में दिए गए सामाजिक और कल्याणकारी एजेंडे के सिद्धांत की अनदेखी की है। आम आदमी पार्टी ने अर्जी में कहा है कि वंचित वर्ग के सामाजिक आर्थिक कल्याण के लिए लायी जाने वाली योजनाओं को मुप्त रेवड़ियां नहीं कहा जा सकता। कहा गया है कि यह मामला कोर्ट के विचार का नहीं है बेहतर है कि इस नीतिगत मसले को केंद्र और राज्यों की चुनी हुई सरकारों पर छोड़ दिया जाए।
विशेषज्ञ समिति में प्रतिनिधि शामिल करने की मांग
आम आदमी पार्टी ने कहा है कि अगर कोर्ट 3 अगस्त के आदेश के मुताबिक इस पर विचार के लिए एक विशेषज्ञ समिति के गठन का इच्छुक है तो उस विशेषज्ञ समिति में केंद्र सरकार का एक प्रतिनिधि, सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का एक प्रतिनिधि, देश की प्रत्येक मान्यता प्राप्त पार्टी का एक-एक प्रतिनिधि, एक प्रतिनिधि रिजर्व बैंक आफ इंडिया का, एक प्रतिनिधि वित्त आयोग का, एक प्रतिनिधि चुनाव आयोग का, एक प्रतिनिधि नीति आयोग का, एक एक प्रतिनिधि प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश की नीति निर्माता संस्थाओं का और एससी, एसटी, आर्थिक रूप से कमजोर तथा अल्पसंख्यकों के बीच काम करने वाले गैर सरकारी संगठनों के प्रतिनिधि इसमें शामिल होने चाहिए।