छठ पर सूर्यकुंड में लाखों छठ व्रतियों के लिए आस्था का प्रतीक, कुष्ठ रोग दूर होने से जुड़ी है मान्यता
Chhath Puja 2024 देव सूर्यकुंड औरंगाबाद में स्थित एक पवित्र तालाब है जो लाखों छठ व्रतियों के लिए आस्था का प्रतीक है। इस कुंड में स्नान करने और सूर्य मंदिर तक दंडवत करने से कुष्ठ रोग से मुक्ति मिलती है ऐसी मान्यता है। इस लेख में हम देव सूर्यकुंड से जुड़ी पौराणिक कथाओं ऐतिहासिक रहस्यों और सांस्कृतिक महत्व के बारे में जानेंगे।
देव का त्रेतायुगीन सूर्यकुंड (तालाब) लाखों छठ व्रतियों के लिए आस्था का प्रतीक है। नहाय-खाय के दिन से इस सूर्यकुंड में स्नान कर सूर्यमंदिर तक दंडवत करनेवाले श्रद्धालुओं का तांता लगा है। आज गुरुवार को इस कुंड में 10 लाख से अधिक छठव्रती डूबते सूर्य को अर्घ्य प्रदान करेंगे।
इसकी चर्चा भविष्य पुराण से लेकर सूर्य स्रोत जैसे धार्मिक ग्रन्थों में मिलती है। जनश्रुतियों के अनुसार, त्रेतायुग में ऐल नाम के प्रतापी राजा थे, किंतु वे कुष्ट रोग से ग्रसित थे। एक दिन वे शिकार खेलने के क्रम में जंगल क्षेत्र वर्तमान सूर्य नगरी देव पहुंचे।
- इसी दौरान उन्हें स्वप्न (सपना) आया कि हम भगवान भास्कर बारह आदित्यों में से एक इस टीले के नीचे दबे पड़े हैं, यदि तुम मुझे निकालकर मंदिर का रूप देकर स्थापित कर दोगे तो तुम धन्य-धान्य से परिपूर्ण हो जाओगे।
- तत्पश्चात इला के पुत्र ऐल इस टीले की खुदाई कराकर भगवान भास्कर के ब्रह्मा, विष्णु, महेश के रूप में तीन मूर्तियां पाईं। इन मूर्तियों को राजा ने उसी स्थान पर स्थापित कराकर भगवान विश्वकर्मा द्वारा विशाल मंदिर का निर्माण कराया।
अंबेडकर विश्वविद्यालय के उप अधिष्ठाता और भारतीय संग्रहालय संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष आनंद वर्द्धन कहते हैं कि भगवान सूर्य की पत्नी संज्ञा और पुत्र रेवंत का मंदिर देव से करीब दो किमी दूर एरकी गांव में है।