फेंके गए कूड़े को एकत्र कर स्वच्छता का संदेश दे रहे कर्नल
लैंसडौन कर्नल चंद्रपाल पटवाल ने पहले सीमा की रक्षा के लिए कारगिल में जंग लड़ी और अब परिवेश की स्वच्छता के लिए छावनी नगर लैंसडौन में मोर्चा संभाले हुए हैं। सेवानिवृत्ति के बाद से उन्होंने नगर की स्वच्छता को ही जीवन का ध्येय बना लिया है, ताकि लोग खुली हवा में सांस ले सकें।
इसके लिए पटवाल नियमित रूप से नगर में जगह-जगह पर्यटकों द्वारा फेंके गए कूड़े को एकत्र करते हैं और स्थानीय निवासियों के साथ पर्यटकों को भी पर्यावरण को स्वच्छ रखने के लिए जागरुक करते हैं। इसके अलावा भर्ती की तैयारी को लैंसडौन आने वाले युवाओं के लिए वह निश्शुल्क लंगर भी लगाते हैं।
छावनी नगर की सैर पर हर साल आते हैं हजारों पर्यटक
प्रदेश के प्रमुख पर्यटन स्थलों में शुमार होने के कारण हर साल हजारों की संख्या में पर्यटक छावनी नगर की सैर पर आते हैं। गर्मियों के मौसम में तो यहां पैर रखने को भी जगह नहीं बचती। लेकिन, यही पर्यटक जब वापस लौटते हैं तो अपने पीछे बड़ी मात्रा में प्लास्टिक कचरा छोड़ जाते हैं। इससे नगर तो बदरंग होता ही है, पर्यावरण पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
इसी को देखते हुए लैंसडौन में पले-बढ़े कर्नल कर्नल चंद्रपाल पटवाल (सेनि) ने छावनी नगर को स्वच्छ एवं सुंदर बनाने की मुहिम छेड़ी है। इसके तहत वह जगह-जगह पर्यटकों के फेंके कूड़े को इकट्ठा करने का कार्य कर रहे हैं। साथ ही इस मुहिम को सफल बनाने के लिए क्षेत्र के लोगों को भी इसमें सहभागिता निभाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
वर्ष 2006 में नगर को मिल चुका है इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार
हालांकि, छावनी नगर की स्वच्छता के क्षेत्र अपनी अलग पहचान रही है। इसके लिए वर्ष 2006 में नगर को इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार भी मिल चुका है। जबकि, वर्ष 2023 में लैंसडौन अटल निर्मल पुरस्कार में दूसरी पायदान पर रहा।
कर्नल पटवाल के अनुसार, ‘पर्यटकों की बढ़ती आमद के बीच सुबह की सैर के दौरान जब मैंने नगर में जगह-जगह गंदगी पसरी देखी तो स्वच्छता की मुहिम शुरू करने का निर्णय लिया। शुरुआत में मैं अकेले ही कूड़ा इकट्ठा करता था, लेकिन धीरे-धीरे पर्यटक भी इस मुहिम का हिस्सा बनने लगे। अब स्थानीय निवासी भी मुहिम से जुड़ गए हैं।’
पटवाल कहते हैं कि नगर का कूड़ा एकत्र करने की जिम्मेदारी सिर्फ छावनी प्रशासन की ही नहीं है, हर व्यक्ति को इसमें शामिल होना चाहिए। साथ ही साफ-सफाई कोई अभियान न होकर प्रत्येक व्यक्ति की दिनचर्या का हिस्सा होना चाहिए। इसके अलावा पटवाल लोगों को पौधारोपण के लिए भी प्रेरित कर रहे है।
सामाजिक सरोकारों में बढ़-चढ़कर भागीदारी
कर्नल चंद्रपाल पटवाल ने वर्ष 1985 में सेना का हिस्सा बने। कारगिल युद्ध के दौरान उन्होंने 13 जैक राइफल्स के साथ कारगिल के विभिन्न सेक्टर में दुश्मन के विरुद्ध मोर्चा संभाला। वर्ष 2017 में सेना की आयुध कोर से सेवानिवृत्त होने के बाद वे अपनी जड़ों की ओर लौट आए।
लैंसडौन गढ़वाल राइफल्स का मुख्यालय भी है, इसलिए प्रदेश के विभिन्न जिलों से युवा भर्ती पूर्व तैयारी के लिए बड़ी संख्या में यहां पहुंचते हैं। पटवाल इन युवाओं को फिजिकल फिटनेस के टिप्स देने के साथ लिखित परीक्षा की तैयारी के लिए उनका मार्गदर्शन भी करते हैं। पांच भाई-बहनों में चौथे नंबर के पटवाल ने नगर के युवाओं को खेल के प्रति प्रोत्साहित करने के लिए कई फुटबाल टूर्नामेंट भी यहां आयोजित करवाए।
जयहरीखाल इंटर कॉलेज के बाद राजकीय महाविद्यालय लैंसडौन से उच्च शिक्षा की डिग्री लेने वाले पटवाल अपने साथियों को भी लैंसडौन वापस लौटकर स्वरोजगार अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं।
कैंट कर्मचारियों को राशन बांटकर चर्चाओं में रहे पटवाल
बजट कटौती के चलते कैंट कर्मचारियों को समय से वेतन न मिलने की समस्या आम हो गई है। इससे पूर्व, कैंट कर्मचारियों को जब लगातार चार माह तक वेतन नहीं मिला तो कर्नल पटवाल ने उन्हें राशन के किट और रोजमर्रा का जरूरी सामान वितरित किया। उनकी इस पहल को नगरभर में सराहा गया।