उत्तराखण्ड

कुमाऊं में सीएम धामी समेत चार कैबिनेट मंत्री मैदान में तो कांग्रेस से पूर्व सीएम हरीश रावत समेत तीन अध्यक्ष आजमा रहे अपना भाग्य

कुमाऊं में राजनीतिक दलों के दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। यहां से भाजपा से सीएम समेत चार कैबिनेट मंत्री चुनावी रण में उतरे हैं। वहीं कांग्रेस से पूर्व सीएम समेत तीन कार्यकारी अध्यक्ष भी चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे हैं। मिशन-2022 फतह के लिए मिशन मोड पर प्रचार शुरू हो चुका है। चुनाव के अब 13 दिन शेष रह गए हैं। ऐसे में इन दिग्गजों को खुद की सीट के साथ ही दूसरी सीटों पर भी प्रचार करना है। कम समय में यह किसी चुनौती से कम नहीं होगा।

भाजपा से सीएम पुष्कर सिंह धामी सीमांत क्षेत्र खटीमा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। धामी के सामने खुद चुनाव जीतने के साथ प्रदेश भर में जीत के लिए माहौल बनाना है। विषम भौगोलिक परिस्थिति वाले पर्वतीय क्षेत्र में हर सीट पर पहुंच पाना आसान नहीं हैं। उन्हें छह महीने के सीएम का कार्यकाल और राज्य व केंद्र सरकार के कार्यों को भी बताना है। कोरोना के चलते बड़ी सभाएं संभव नहीं हैं। ऐसे में कम समय में अधिक लोगों तक पहुंचने की बड़ी चुनौती है। फिलहाल इसके लिए मिशन मोड पर चुनाव प्रचार शुरू कर दिया गया है। इसके साथ ही भाजपा सरकार के चार कैबिनेट मंत्रियों में डीडीहाट से बिशन सिंह चुफाल, सोमेश्वर से रेखा आर्य, कालाढूंगी से बंशीधर भगत और गदरपुर से अरविंद पांडे हैं। इन्हें भी स्टार प्रचारक के तौर पर अपने अलावा दूसरी सीटों पर भी प्रचार करने की जिम्मेदारी है। दूसरी सीटों पर पहुंचने के अलावा वर्चुअल संबोधन भी करना है।

कुमाऊं की 29 सीटों में से कांग्रेस भी अधिकांश सीटें जीतने की हरसंभव जुगत में लगी है। कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व सीएम हरीश रावत भी कुमाऊं की लालकुआं सीट से ताल ठोके हुए हैं। वह प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस के सबसे बड़े स्टार प्रचारक हैं। इसके साथ ही तीन कार्यकारिणी अध्यक्षों में किच्छा से तिलकराज बेहड़, सल्ट से रणजीत रावत और खटीमा की वीवीआइपी सीट से भुवन कापड़ी की प्रतिष्ठा दांव पर है। पार्टी ने इन्हें बड़ा ओहदा दिया है, ताकि इनकी साख भुनाई जा सके। अब यह स्थिति मिशन-2022 के लिए अब इन दिग्गजों के लिए दोहरी चुनौती है। इसके साथ ही इन दोनों नेताओं के सामने बगावत व भीतरघात की भी स्थिति है। भाजपा काफी हद तक बगावत शांत करने में कामयाब दिख रही है, लेकिन भीतरघात भी चुनौती बनी हुई है। यही स्थिति कांग्रेस के लिए अधिक चुनौतीपूर्ण है। इन दिग्गजों के सामने इस तरह के माहौल को शांत करने की भी बड़ी जिम्मेदारी है।

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